विश्वरूप पांडा
आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर पक्ष और विपक्ष ने अपनी रणनीति तैयार करना शुरू कर दिया है। अलग अलग नाम देकर कार्यक्रम किए जा रहे हैं, पक्ष और विपक्ष के संभावित उम्मीदवार क्षेत्र में दौरा करना शुरू कर दिया है। रांची लोकसभा पर बीते दो कार्यकाल से भाजपा का कब्जा है। वर्तमान में रांची लोकसभा से भाजपा के संजय सेठ सांसद हैं। लेकिन भाजपा को टक्कर देने के लिए विपक्षी दल (कांग्रेस) के पास फिलहाल कोई फुर्तीला और दमदार नेता नहीं दिख रहा है।
अभी तक पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय के भरोसे ही विपक्ष की नाव चल रही हैं। यदि बीते 2019 लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस और सुबोधकांत सहाय के क्रियाकलापों पर गौर करें तो आपको सबकुछ निष्क्रिय देखने को मिलेगा। 2019 से अबतक सुबोधकांत सहाय एक – दो बार क्षेत्र में किसी एक – दो कार्यक्रम में आए हैं। अभी चुनाव की सुगबुगाहट के बाद लगातार ईचागढ़ विधानसभा क्षेत्र के दौरे पर हैं। इसके अलावा रांची लोकसभा के अन्य विधानसभा क्षेत्र में भी सक्रियता बढ़ाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। पर, अब पहले वाले सुबोध सहाय नहीं रहे। अब सुबोधकांत सहाय शारिरिक और मानसिक रूप से सुस्त पड़ चुके हैं। क्षेत्र में दौरा करने पर जल्द ही थकान महसूस कर रहे हैं, शरीर कांप रही हैं। आवाज रुंधी हो चुकी हैं। क्षेत्र की समस्याएं स्पष्ट रूप से याद नहीं है, यानी यादाश्त भी कमजोर पड़ने लगी हैं।
चांडिल पुनर्वास कार्यालय के समक्ष धरना प्रदर्शन कर रहे विस्थापितों से मुलाकात करने पहुंचे पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय को जमीन पर ही बैठना पड़ा। इस दौरान वह काफी असहज महसूस कर रहे थे। जमीन पर बैठकर विस्थापितों से बातचीत के दौरान कभी पैरों को मोड़ रहे थे, तो कभी कूल्हे को खिसका रहे थे। चांडिल डैम के प्रभावित 116 गांव के समस्या को समझने के लिए भी उन्हें अपने दिमाग पर काफी जोर लगाना पड़ रहा था। काफी समय तक विस्थापितों से बातचीत के बाद उन्हें समस्या समझ आई, तब जाकर उन्होंने सुवर्णरेखा परियोजना के अपर निदेशक रंजना मिश्रा से फोन पर बात की। वहीं, विभागीय सचिव से भी बात की।
कुल मिलाकर 72 वर्षीय सुबोधकांत सहाय अभी भी रांची लोकसभा के लिए एक मजबूत और दमदार प्रत्याशी साबित करना चाहते हैं। लेकिन वास्तविकता से मुंह मोड़ना कहीं न कहीं विपक्ष के लिए 2024 में हार का कारण बन सकता है। यदि कांग्रेस एक फुर्तीले और युवा प्रत्याशी को मैदान में उतार दे, तो निश्चित तौर पर भाजपा को कड़ी टक्कर मिलेगी।
नेता विहीन विपक्ष का लाभ भाजपा को मिल रहा है
रांची लोकसभा में वर्तमान में भाजपा से संजय सेठ सांसद हैं। 63 वर्षीय सांसद संजय सेठ भी 2024 में 64 के हो जाएंगे। सांसद संजय सेठ भी रांची लोकसभा में खास सक्रिय नहीं रहते हैं। लोकसभा के छह विधानसभा क्षेत्र में से अधिकांश समय रांची शहर में ही रहते हैं। तीन – चार महीने के अंतराल में एक बार लोकसभा क्षेत्र का दौरा करते हैं, जिनमें से अधिकांश कार्यक्रम भाजपा संगठन के ही होते हैं। यानी कि आम जनता के साथ खास जुड़ाव नहीं होता है। लेकिन, यहां विपक्षी दल के नेता भी स्वयं कमजोर है और निष्क्रिय हैं। इसका सीधा लाभ सांसद संजय सेठ को मिल जाता है।
इसके पूर्व में भी 2014 में मोदी लहर में रामटहल चौधरी प्रचंड मतों से विजयी घोषित हुए थे। जीत के बाद रामटहल चौधरी भी निष्क्रिय हो गए थे। 2019 में पूर्व सांसद रामटहल चौधरी का टिकट काटकर संजय सेठ को भाजपा ने टिकट देकर उम्मीदवार घोषित किया और वह जीत गए।
नए चेहरे के रूप में आए सांसद संजय सेठ को लेकर क्षेत्र के जनता के मन में उम्मीद जगी थी कि इस बार का नया सांसद जनकल्याण के कार्यों में सक्रिय रहेंगे। लेकिन वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हुई। चुनाव जीतने के बाद सांसद संजय सेठ केवल रांची शहर के होकर रह गए। रांची शहर तक ही उनका क्रियाकलाप सीमित हो गया है। ईचागढ़, सिल्ली, कांके, खिजरी जैसे महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्र में सांसद की उपलब्धियों पर अब जनता आकलन कर रही हैं।